दंगाइयों के सामने
हाथ जोड़ना पुलिस का काम नहीं...... हर कानून तोड़ने वाले को सजा मिले ---
चाहे वह कोई भी क्यों ना हो
Jamshedpur Riots 21 July 2015 |
सौहाद्रपूर्ण शान्ति
एक लम्बी प्रक्रिया का परिणाम है. कानून का शासन, चुस्त प्रशासनिक अमला और भारी जन सहयोग
के बगैर यह संभव नहीं. इसका विकल्प उपहास पूर्ण शान्ति की अपील और याचक के रूप में
गुंडों और दंगाइयों के सामने नतमस्तक पुलिस प्रशासन नहीं हो
सकता. इस तरह की नीति सतही और अल्पकालिक शान्ति के अलावा कुछ नहीं दे
सकती लेकिन
आने भयंकर दंगो की वजह जरुर बन सकती है. जाहिर तौर पर जमशेदपुर को सख्त और कानून
का शासन स्तापित करने वाला निडर पुलिस प्रशासन चाहिए.
शहर में दंगे की आहट लम्बे समय से सुनी जा
रही थी. ये बात और है कि प्रशासन इसे गंभीरता से नहीं ले रहा था. शहर में छेड़ –छाड़ की घटनाएँ काफी तेजी से बढ़ रही थी. सोशल मीडिया पर साम्प्रदायिक उन्माद सन्देश पोस्ट हो रहे
थे. इसके
अलावा शहर के
अलग –अलग हिस्सों में
साम्प्रदायिक तनाव की स्थिति बार -बार बन रही थी. परन्तु स्थानीय प्रशासन हर बार मामलो की तह में गये बगैर
इन्हें रफा
दफा कर
देता था. पिछले
वर्ष की रानिकुदर
की घटना हो या फिर कुछ दिनों पहले घटा गोलमुरी का वाकया. किसी भी मामले
में न तो पुलिस द्वारा मामले की गहरी तफ्तीश की गयी
और न
ही असली अपराधियों तक पहुचने की कोशिश. इसका असर यह हुआ कि साम्प्रदायिक मानसिकता वाले
लोगों का मनोबल बढ़ने लगा और प्रशासन का भय खतम हो गया.
प्राप्त जानकारी के
अनुसार २० तारीख की रात मानगो के गाँधी मैदान में अल्पसंख्यक
समाज के ही दो गुटों में झगडा हुआ था परन्तु दो घंटे के अन्दर अन्दर सारा
मामला साम्प्रदायिक रूप अख्तियार कर गया. जिन लोगो के एक लड़की के साथ छेड़
-छाड़ की उनकी रिपोर्ट स्थानीय थाने में की गई थी. दोनों मामलो में पुलिस
द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई थी जाहिर तौर पर यह प्रशासन चुक का मामला
नहीं था. बल्कि यह जानबूझ कर स्थिति को नजरंदाज कर ‘शान्ति बरकरार है’ का ढोंग करने का पुलिसिया नीति का प्रमाण था. पायल सिनेमा के पास २० तारीख की रात लोग मरने –मारने पर उतारू थे वहां पर पुलिस अमले की हाँथ जोड़ कर शांति की याचना की नीति बेहद निराशाजनक थी. इस दौरान कई पुलिश वाले घायल भी हुए. पुलिस के पीछे हटने की खबर ने लोगो को प्रशासन के प्रति अविश्वास से भर दिया. जिसकी प्रतिक्रिया २१ तारीख की बंदी थी. इसे भी प्रशासन ने बेहद हलके से लिया था. प्रशासन को समझना चाहिए था कि तनाव के समय में धार्मिक संगठनो की शक्ति बहुत ज्यादा बढ़ जाती है. ‘भय’ और ‘नफरत’ लोगो में धर्मान्धता का जूनून भर देती है. और हजारो अनजान लोग इनके साथ हो जाते है.
कोई भी शासन तंत्र जनता के विश्वास और सहयोग के बगैर नहीं चलता. दो दिनों के घटनाक्रम से जाहिर तौर पर आम जनता के मन में यह भावना बढ़ी है कि पुलिस उनकी रक्षा करने में अक्षम है. भागते पुलिस वालों और घायल वरीय प्रसासनिक अधिकारियों की तस्वीरे समाज के लिए अच्छा सन्देश नहीं है. अगर समाज में प्रशासन के प्रति अविश्वास का भाव बढेगा तो लाजमी है, आने वाले समय में हर घर में आत्म रक्षा के नाम पर बम और बारूद होगा और हर आदमी की कमर में पिस्तौल.
सोचना समाज को भी है और प्रशासन को भी. कि समाज कबतक अपराधियों को धर्म की आड़ में बचाता रहेगा और प्रशासन कब तक सतही शान्ति स्थापित करने के लिए अपराधियों और दंगायियो के सामने नत मस्तक होता रहेगा. शहर में कानून का शासन हों. हर कानून तोड़ने वाले को सजा मिले --- चाहे वह कोई भी क्यों ना हो.
Jamshedpur Research Review. Blogspot.com
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