Kolhanam(Novel) Readers and experts opinion कोल्हानम -पाठकों की राय

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(छोटानागपुर पठार की जनजातियों के सनातन संपर्कों की ईसा-पूर्व 100 की महागाथा) .कोल्हानम का एक अंश कोल्हानम उपन्यास यहाँ ख़रीदे- कोल्हानम का विवरण पाठकों एवं समीक्षकों की राय- एक सांस में आप पढ़ सकते हैं। रोचक भी है और रहस्यपूर्ण भी- "रहस्य और इतिहास में लिपटी हुई यह कथा आदिवासी बनाम सनातन के अंतरसंबंधों की पड़ताल करती है। क्या मुंडेश्वरी का मुंडाओं से कोई संबंध है? विंध्याचल देवी किसकी आराध्या हैं? वैदिक असुर से झारखंड के असुर के बीच कोई तादात्म्य है? इस तरह के तमाम सवाल हैं? वैदिक युग से लेकर आज तक इसका विस्तार है। विंध्याचल मुंडेश्वरी धाम से लेकर मगध तक। जैन, बौद्ध छोटानागपुर के पठार पर क्यों बसे। जैनियों का नागवंश से कुछ तो संबंध है? क्या इसके पीछे कोई इतिहास, मिथ या लोकश्रुति है? अशोक को लेकर उस मिथ पर भी नई रोशनी कि कलिंग युद्ध के बाद वह बौद्ध बना जबकि यह उपन्यास बताता है कि वह बहुत पहले ही बौद्ध बन गया था। और भी बहुत कुछ है। एक सांस में आप पढ़ सकते हैं। रोचक भी है और रहस्यपूर्ण भी।" *संजय कृष्ण, दैनिक जागरण, राँची, झारखण्ड.*** झारखंड की आदिवासी संस्कृति का हिंदू रीतियों से जुड़ा होने का सबूत- "विश्वविद्यालय में रिसर्च (पीएचडी) करने आयी छात्रा की कहानी के माध्यम से आपने जिस तरीके से झारखंड के आदिवासियों की संस्कृति उनका हिंदू रीतियों से जुड़ा होने का सबूत दिया है, वह वैसे लोगों के गाल पर तमाचा है जो यहां के आदिवासियों को अक्सर गाह-बगाहे अलग लाइन में खड़ा कर देते हैं, और उन्हें भड़काने का काम करते हैं. कोल्हानम् के माध्यम से आपने झारखंड की संस्कृति को भी चित्रित करने काम किया है. इसे पढ़ने से कई लोगों की जानकारी का स्तर बढ़ेगा।" -विकास श्रीवास्तव, प्रभात खबर, जमशेदपुर. ***
कोल्हानम् छोटानागपुर की धरती से निकली एक बेहतरीन कृति है- "कोल्हानम् की खूबसूरती यह है कि अगर आप इसकी पहली लाइन पढ़ लें, तो आप इसकी अंतिम पंक्ति तक कब पहुँच जायेंगे आपको पता भी नहीं चलेगा। कुछ समय तक विचारधारा से आपका पीछा छुट जायेगा और आप उपन्यास की बेहतरीन विधा के आनंद में आप खो जायेंगे। उपन्यास में रूचि न रखने वाले पाठक भी कुछ नया अनुभव करेंगे।" -शैलेश कुमार, शोधार्थी, राँची विश्वविद्यालय, झारखण्ड.*** इतिहास लेखन के नाम पर होने वाले बौद्धिक घोटालों का दस्तावेज- "आप इस किताब से बेहद नफरत करेंगे, या बेहद मोहब्बत यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आपको भारत में धर्मांतरण के जूनून और इतिहास लेखन के नाम पर होने वाले बौद्धिक घोटालों की कितनी जानकारी और समझ है।" -राकेश पाण्डेय, साहित्यकार, रंगकर्मी एवं प्राध्यापक, जमशेदपुर, झारखण्ड. *** इस महान क्षेत्र की सांस्कृतिक निरंतरता और भारत की सनातन परंपरा के साथ उसकी समंजनता का एक दस्तावेज- "कोल्हानम्, प्राचीन भारत में झारखंड के छोटानागपुर की सक्रिय उपस्थिति को दर्शाता एक विलक्षण उपन्यास है। चूँकि मैं भी छोटानागपुर का ही हूँ इसलिए इसके कथानक से एक आत्मीयता सी अनुभूत हुई। इस महान क्षेत्र की सांस्कृतिक निरंतरता और भारत की सनातन परंपरा के साथ उसकी समंजनता का एक दस्तावेज -सा है यह उपन्यास। इस पुस्तक का आस्वाद लेने के लिए साहित्य के साथ साथ प्राचीन इतिहास के प्रति अनुराग और बोध होना भी जरूरी है, अन्यथा आँखें कुछ और ही ढूंढने लगेंगी। उपन्यास मिथिलेश चौबे ने इतिहास को विकृत करनेवाले तथाकथित शोध -प्रक्रिया के वितंडावाद का पर्दाफाश किया है। इतिहास प्रेमियों को यह आख्यान एक बार अवश्य पढ़नी चाहिए। काफी कुछ स्पष्ट होता नज़र आएगा।" -दिव्येंदु त्रिपाठी, वरिष्ठ लेखक एवं इतिहासकार ***
साहित्य, संस्कृति और सच आपको बहुत कुछ मिलेगा इस उपन्यास में- "हिन्दी साहित्य मे, शोधपरक उपन्यासों की आज भी बहुत कमी है! केल्हानम् इस मानक को पूरा करता है। झारखंड और बिहार की पृष्ठभूमि पर खड़ा यह उपन्यास इतिहास, भूगोल और समसामयिक घटनाओं की संजीदगी लिए क़ई तथ्यों पर पाठक का ध्यान आकृष्ट करता है। खासकर उच्च शिक्षा के क्षेत्र मे डाक्टरेट की डिग्री!! कोल्हानम् का एक मजबूत सफर है। इस उपन्यास को पढ़ते हुए क़ई बार ऐसा लगा जैसे इन घटनाओं का साक्षी मै खुद ही हूँ। क़ई प्रसंग चलचित्र की भाँति आँखों के सामने घुमने लगे।" -बरूण प्रभात, साहित्यकार. ***
संथाल होने के नाते अपने पूर्वजों की गौरव -गाथा पढ़ कर अभिभूत हूँ- "कोल्हानम की कहानी भारत के जिस हिस्से से सम्बंधित है वह नदियों, पहाड़ों और जंगलों से घिरा भारतीय संस्कृति के प्राचीनतम भू-भागों में एक है। यह पुरातन हरित प्रदेश जिसे आज हम झारखण्ड के नाम से जानते है, आदिम जनजातियों का निवास-स्थान है। दुर्भाग्य से झारखण्ड के प्राचीन इतिहास का अधिकांश हिस्सा अभी भी अन्धकार में डूबा हुआ हैं। इस उपन्यास में लेखक ने अद्भुत कथानक और अकाट्य साक्ष्यों के माध्यम से झारखण्ड की प्राचीन संस्कृति और शेष-भारत की सनातन संस्कृति के मध्य के मजबूत संबंधो को सफलतापूर्वक स्थापित किया है। इस उपन्यास को पढ़ने के क्रम में आप कोल्हानम एक उपन्यास नही बल्कि इतिहास की किताब मान लेने से बच नहीं पायेंगे।" -आर. हांसदा, सामाजिक कार्यकर्ता, पश्चिमी सिंहभूम, झारखण्ड. ****

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