Pingaksh मिथिलेश के नवीनतम उपन्यास पिंगाक्ष की समीक्षा

Visit us at : www. jamshedpurresearchreview.com वर्तमान मे मिथिलेश चौबे ऐतिहासिक उपन्यासों के मामले मे देश के सबसे बेहतरीन लेखकों में से एक है. उनकी शैली की तुलना आप आचार्य चतुरसेन शास्त्री या जयशंकर प्रसाद के ऐतिहासिक उपन्यासों से या नाटकों से ना करें . डॉ. मिथिलेश चौबे की अपनी शैली है जिसमें वह शोध आधारित निष्कर्ष को बहुत ही कुशलता के साथ अपने उपन्यासों में समाहित करते हैं. डॉ. मिथिलेश चौबे के लेखन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह बहुत ही रोचक तरीके से आपको भारत के इतिहास से परिचित करा देते हैं. भारत के इतिहास के हिस्से जिन पर अभी तक इतिहासकारों की नजर भी नहीं गई है उन हिस्सों पर मिथिलेश चौबे के उपन्यास आधारित होते हैं. चाहे वह उनका पहला उपन्यास'सन 80'हो जो जमशेदपुर के 80 और 90 के दशक के इतिहास को बहुत ही खूबसूरत तरीके से लोगों के सामने प्रस्तुत करता है, या उनके द्वारा लिखित कोल्हानम. कोल्हानम एक बहुत ही अद्भुत उपन्यास है. इस उपन्यास की सबसे बड़ी विशेषता लेखक का अलग-अलग दृष्टिकोण से ऐतिहासिक घटनाओं को समझने तथा झारखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में आदिवासियों और गैर आदिवासियों के बीच के धार्मिक संपर्कों को परिभाषित करने का प्रयास है . कोल्हानम में उन्होंने जिस खूबसूरती के साथ झारखंड आदिवासी जनजातीय धार्मिक विश्वासों को सनातन संस्कृति के साथ जोड़ा है वह काबिले तारीफ है. बहुत ही सलीके से दुनिया के सामने प्रस्तुत किए जाने वाले मिथिलेश चौबे के उपन्यासों में अंत तक एक ऐसा गंभीर विषय उभर कर सामने आता है कि पाठक हक्का-बक्का रह जाता है. इनकी उपन्यासों की एक बड़ी विशेषता लेखन शैली है. उपन्यास पढ़ते समय पाठक को लगता है मानों वह कोई फिल्म देख रहा हो. ऐसा लगता है तमाम घटनाएं उसकी आंखों के सामने घट रही हो., और वह स्वयं को उन घटनाओं से जोड़ लेता है. यह शैली आमतौर पर भारतीय उपन्यासों में देखने को नहीं मिलती . भारतीय उपन्यासों में शब्दों का जाल इतना उलझा हुआ होता है कि एक पाठक चाह कर भी किसी उपन्यास को एक बार में खत्म करने मे असफल हो जाता है. लेकिन मिथिलेश चौबे के उपन्यास चाहे वह सन 80 हो कोल्हानम या फिर उनका नवीनतम उपन्यास पिंगाक्ष आप इसे एक बैठक में पढ़ सकते हैं. मैंने इस संबंध में कई लोगों से बातचीत की. जिन्होंने उनके उपन्यासों को पढ़ा था. उनमें से कई ऐसे लोग थे जिन्होंने पिछले कई दशकों में पहली बार कोई उपन्यास पढ़ी थी. यानी कि मिथिलेश के उपन्यास मुख्य रूप से उपन्यास पढ़ने वाले पाठक वर्ग को ही प्रभावित नहीं करते हैं बल्कि उन लोगों को भी पढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं जो आमतौर पर उपन्यास नहीं पढ़ते. यानी कि मिथिलेश चौबे अपने उपन्यासों के माध्यम से पाठकों के दायरे को विस्तृत करते हैं. अब चर्चा करते हैं मिथिलेश जी के नए उपन्यास पिंगाक्ष की. पिंगाक्ष एक ऐतिहासिक उपन्यास है जिसमें पाठक ने बड़े ही तार्किक तरीके से आदिवासियों और भारतीय प्राचीन संस्कृति के बीच के संबंध को स्थापित करने का प्रयास किया है. इस उपन्यास को पढ़ने के बाद यह पता चलता है कि किस तरह से प्राचीन आदिवासी संस्कृति ही बाद में विकसित होकर के विस्तृत सनातन धर्म के रूप में तब्दील हुई. आदिवासियों के आदिम विश्वास, धार्मिक क्रियाकलाप और उनके जीवन शैली के महत्वपूर्ण हिस्से बाद के वर्षों में सनातन संस्कृति में परिवर्तित हो गए . एक स्थान पर जब लेखक यह कहते हैं कि सनातन का विकास सरना से ही हुआ है तो सारी बातें खुलकर के सामने आ जाती है कि वह आदिवासियों को सनातन संस्कृति का हिस्सा नहीं बल्कि सनातन संस्कृति के जड़ के रूप में देखते हैं, जहां से सनातन संस्कृति का विकास हुआ है. पिंगाक्ष मूल रूप से एक आदिवासी युवक की कहानी है जो अपने पूर्वजों की तलाश में भारत के विभिन्न हिस्सों में भटकता है , और इसी भटकाव के क्रम में वह अंततः अयोध्या पहुंचता है. जहां उसे अपने आदिम पूर्वज से मिलने का मौका मिलता है. यह एक बेहद ही दिलचस्प उपन्यास है और भारत के लोगों को जोड़ने वाली कहानी है, जिसमें भारत के सभी जातियों , संप्रदायों और समूहों के बीच एक मजबूत रिश्ते को प्रस्तुत किया गया है. इस उपन्यास के माध्यम से लेखक ने पहली बार एक ऐसे नॉरेटिव्स के साथ बुद्ध को प्रस्तुत किया है कि पढ़ने वाले के दिमाग की नसें खुल जाती हैं. लेखक एक स्थान पर रहते हैं कि गौतम बुद्ध वस्तुत वैदिक धर्म संस्कृति के खिलाफ नहीं बल्कि उस दौर में जो गैर वैदिक विश्वास थे उनमें सुधार के लिए जाने जाने चाहिए. बौद्ध धर्म के बारे में लेखक की दृष्टि बहुत ही स्पष्ट और सुलझी हुई है , तथा एक नए नजरिए से भारत में इस्लाम के विस्तार में बौद्ध धर्म की भूमिका की चर्चा करते हैं. लेखक प्रयास करते हैं कि वस्तुत भारत में इस्लाम उन क्षेत्रों में ज्यादा फैला जहां पर बौद्ध धर्म ज्यादा प्रभावी था . लेखक कहते हैं कि भारत ही नहीं बल्कि वर्तमान भारत के बाहर जहां पर भी हिंदू धर्म को प्रतिस्थापित कर बौद्ध धर्म का विकास हुआ वहां पर कालांतर में इस्लाम आया और बहुत मजबूती के साथ आया. इस उपन्यास में लेखक ने सिद्ध करने का प्रयास किया है कि गौतम बुद्ध वास्तव में वैदिक धर्म के सुधार के लिए नहीं बल्कि भौतिकवादी विचारधाराओं में नैतिकता और मानवीय मूल्यों के इंक्लूजन के लिए जाने जाने चाहिए . गौतम बुद्ध ने ग़ैर र्वैदिक समाज में मूल्य और नैतिकता का समावेश किया और इसके लिए उन्हें हिंदुओं द्वारा अवतार के रूप में मानने की प्रेरणा मिली. यह एक बेहतरीन उपन्यास से इस उपन्यास में सिलसिलावर तरीके से जिस तरह से विभिन्न प्रकार के रहस्यों को एक कड़ी के साथ जोड़ा गया है तथा भारत में भारत के प्राचीन मध्यकालीन और आधुनिक इतिहास को जितनी खूबसूरती के साथ समेटा गया है वह काबिले तारीफ है. पूरे उपन्यास में आपको शायद ही कोई ऐसी लाइन या कोई शब्द मिलेगा जिसे हटा देने के बाद भी उपन्यास की परिपूर्णता बनी रहे. मिथिलेश चौबे की एक बड़ी विशेषता गैर जरूरी बातों और अनर्गल शब्दों के विन्यास से बचने की है. वह अपने शब्दों को अपने वाक्यों को छोटा रखते हैं तथा गैर जरूरी रूप से जटिल शब्दों का इस्तेमाल नहीं करते हैं, इससे उनकी किताबों में प्रवाह बना रहता है. मिथिलेश चौबे अपने उपन्यासों के माध्यम से देश की जनता को स्पष्ट संदेश देते हैं कि हर भारतीय को अपने अतीत से प्रेम करना चाहिए तथा उसे यह समझना चाहिए कि भारत भूमि एक देव भूमि है और इसकी रक्षा की जिम्मेदारी हर एक भारतीय की है. इस उपन्यास का आरंभ और अंत दोनों अद्भुत है. अगर आप कहें तो यह इसके आरंभ और अंत में जो कुछ भी घटता है, और जिस तरह से उनका वर्णन लेखक ने किया है, आपको एक बेहतरीन ऐतिहासिक फिल्म की अनुभूति कराता है . इसके अलावा इन उपन्यास में बहुत ही गंभीर सामाजिक विमर्श छिपे हुए हैं और इन विमर्शों में आपको अलग-अलग नॉरेटिव्स के साथ चीजों को प्रस्तुत करने के लिए मिथिलेश चौबे की काबिलियत की तारीफ करनी होगी . यह एक बेहतरीन किताब है और यह किताब एक ऐसे व्यक्ति द्वारा लिखी गई है जिस जो आध्यात्मिक रूप और सांस्कृतिक रूप से देश की एकता और अखंडता के लिए प्रतिबद्ध है, तथा समाज के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न वर्गों के बीच बढ़ रहे तनाव के कारणों को समाप्त करने केलिए कटिबद्ध हैं. दस कारण जिनकी वजह से पिंगाक्ष पढ़ी जानी चाहिए. 1. यह उपन्यास नहीं बल्कि एक इतिहास है जिसे बेहद रोचक तरीके से लिखा गया है . 2. इस उपन्यास में बौद्ध धर्म के पतन के कर्म को नए तरीके से समझाने का प्रयास किया गया है. 3. इस उपन्यास में आदिवासियों और पौराणिक देवता हनुमान के बीच के संबंधों को बहुत ही तार्किकता से स्थापित किया गया है. 4. इस उपन्यास में पहली बार आस्तिकता और नास्तिकता के बीच के द्वंद्व को बेहद रोचक तरीके से प्रस्तुत किया गया है. 5. यह उपन्यास स्त्री और पुरुषों के बीच के संबंधों और द्वंद्व को बहुत ही अलग तरीके से प्रस्तुत करताहै तथा यह स्थापित करता है की एक धर्मनिष्ठ पत्नी अपने पति की तभी तक अनुगामिनी है जब तक कि वह सनातन धर्म और संस्कृति का सम्मान करता है. 6. इस उपन्यास में गया तीर्थ के ब्रह्मकल्पित ब्राह्मण वर्गों को पहली बार इतने महत्वपूर्ण तरीके से दुनिया के सामने प्रस्तुत किया गया है. 7. इस उपन्यास में पहली बार झारखंड के प्राचीन जोएदा मंदिर तथा स्वर्णरेखा नदी को कहानी के केंद्र में रखा गया है. यह उपन्यास एक ऐसा उपन्यास है जिसे हर भारतीय आदिवासी को पढ़ना चाहिए तथा उसे समझना चाहिए की वह इस भारतीय संस्कृति का कितना अभिन्न और महत्वपूर्ण हिस्सा है और वह इस देश की धार्मिक आस्था के केंद्र में न होकर बल्कि उसकी आत्मा है. 8. यह उपन्यास झारखंड में हो रहे आदिवासियों के धर्मांतरण के खिलाफ सबसे महत्वपूर्ण किताबों में से एक है. #डॉ. सदाशिव पांडेय, धनबाद, झारखंड

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